भारत में जल संकट और जल प्रबंधन

भारत में जल संकट और जल प्रबंधन

जल पृथ्वी पर जीवन का आधार है। भारत जैसे कृषि-प्रधान और तेजी से विकसित होते देश में जल संसाधनों का सही प्रबंधन आर्थिक विकास, पर्यावरण संरक्षण, और सामाजिक स्थिरता के लिए अत्यंत आवश्यक है। हालांकि, बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण, और जलवायु परिवर्तन के कारण भारत गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है। यह लेख जल संकट के कारणों, प्रभावों, और प्रभावी जल प्रबंधन की रणनीतियों पर केंद्रित है।

भारत में जल संकट: एक गंभीर समस्या

जल संकट का वर्तमान परिदृश्य

  • भारत दुनिया की कुल आबादी का लगभग 18% हिस्सा रखता है, लेकिन इसके पास दुनिया के ताजे पानी के संसाधनों का केवल 4% है।
  • 2021 में नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 600 मिलियन लोग जल संकट का सामना कर रहे हैं।
  • 21 भारतीय शहर, जिनमें दिल्ली, बेंगलुरु, और चेन्नई शामिल हैं, 2030 तक भूजल समाप्त होने के कगार पर हैं।

जल संकट के कारण

  1. अत्यधिक दोहन और अव्यवस्थित उपयोग
    • कृषि, उद्योग, और घरेलू उपयोग में पानी का अनियमित और अत्यधिक दोहन।
    • भूजल का अत्यधिक उपयोग, विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा, और राजस्थान जैसे राज्यों में।
  1. जलवायु परिवर्तन
    • वर्षा के पैटर्न में बदलाव और अनियमित मानसून।
    • ग्लेशियरों के पिघलने और सतही जल स्रोतों में कमी।
  1. जनसंख्या वृद्धि और शहरीकरण
    • बढ़ती आबादी के कारण जल संसाधनों पर दबाव।
    • शहरीकरण से गंदे पानी का संचय और जल प्रदूषण।
  1. जल प्रबंधन की कमी
    • जल संरक्षण तकनीकों और नीतियों का अभाव।
    • पारंपरिक जल स्रोतों जैसे तालाब और झीलों की उपेक्षा।
  1. जल प्रदूषण
    • घरेलू और औद्योगिक कचरे का जल स्रोतों में अनियंत्रित निस्तारण।
    • रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के कारण जल की गुणवत्ता में गिरावट।

भारत में जल संकट के प्रभाव

1. कृषि और खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव

  • 60% से अधिक भारतीय कृषि मानसून पर निर्भर है।
  • पानी की कमी के कारण सिंचाई और फसल उत्पादन में गिरावट।
  • सूखा और जल संकट के कारण किसान आत्महत्याएं।

2. स्वास्थ्य पर प्रभाव

  • दूषित पानी के कारण जल जनित रोगों जैसे टाइफाइड, डायरिया, और हैजा के मामले बढ़ रहे हैं।
  • स्वच्छ पेयजल की कमी से कुपोषण और स्वास्थ्य समस्याएं।

3. सामाजिक और आर्थिक असमानता

  • गरीब और ग्रामीण क्षेत्रों में जल की अनुपलब्धता से असमानता बढ़ रही है।
  • पानी की खरीद पर अधिक व्यय से गरीब परिवारों की आर्थिक स्थिति प्रभावित हो रही है।

4. पर्यावरणीय प्रभाव

  • नदियों, झीलों, और जलाशयों का सूखना।
  • भूजल स्तर में गिरावट से भूमि धंसने और सूखा पड़ने का खतरा।

जल संकट से निपटने के लिए जल प्रबंधन की आवश्यकता

जल प्रबंधन क्या है?

जल प्रबंधन में जल संसाधनों का कुशलतापूर्वक उपयोग, संरक्षण, और पुनर्चक्रण शामिल है। यह प्राकृतिक जल चक्र को संतुलित रखने और वर्तमान एवं भविष्य की आवश्यकताओं को पूरा करने का एक संगठित प्रयास है।

भारत में जल प्रबंधन की रणनीतियां

1. वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting)

  • वर्षा के पानी को संग्रहित कर उसे घरेलू और कृषि उपयोग में लाया जा सकता है।
  • शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में अनिवार्य वर्षा जल संचयन की नीति लागू की जानी चाहिए।
  • उदाहरण: तमिलनाडु में वर्षा जल संचयन के अनिवार्य कानून से भूजल स्तर में सुधार हुआ है।

2. जल पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग

  • घरेलू और औद्योगिक अपशिष्ट जल का उपचार और पुन: उपयोग।
  • सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स की स्थापना और संचालन।
  • सिंचाई और उद्योगों में पुन: उपयोग के लिए जल उपचार तकनीक का उपयोग।

3. परंपरागत जल संरक्षण प्रणालियों का पुनरुद्धार

  • पारंपरिक जल स्रोतों जैसे बावड़ी, तालाब, और झीलों को पुनर्जीवित करना।
  • राजस्थान की जोहड़ प्रणाली और महाराष्ट्र की पेरकुलेशन टैंक प्रणाली जैसे उदाहरण।

4. सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली

  • ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई तकनीकों का उपयोग कर जल की बचत।
  • “प्रति बूंद अधिक फसल” (Per Drop More Crop) योजना के तहत किसानों को प्रोत्साहन।

5. जल उपयोग में जन जागरूकता

  • जल संरक्षण के लिए शैक्षणिक और जागरूकता कार्यक्रम।
  • स्कूली पाठ्यक्रम में जल प्रबंधन के पाठ शामिल करना।
  • नागरिकों को जल की महत्ता और संरक्षण के प्रति संवेदनशील बनाना।

6. मजबूत जल नीति और कानूनी ढांचा

  • जल संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण के लिए सख्त कानून लागू करना।
  • जल उपयोग के लिए सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देना।

7. जल और कृषि में नवाचार

  • जलवायु अनुकूल फसलों का विकास।
  • कम पानी की खपत वाली कृषि पद्धतियों को अपनाना।
  • स्मार्ट कृषि और सटीक सिंचाई तकनीकों का उपयोग।

8. नदी जोड़ने की योजना

  • गंगा, ब्रह्मपुत्र, और गोदावरी जैसी बड़ी नदियों को जोड़ने की परियोजनाएं।
  • सूखा प्रभावित क्षेत्रों में जल आपूर्ति सुनिश्चित करना।

सरकारी प्रयास और नीतियां

1. जल शक्ति मंत्रालय

2019 में स्थापित इस मंत्रालय का उद्देश्य देश में जल संकट से निपटना और जल प्रबंधन को सशक्त बनाना है।

2. अटल भूजल योजना (Atal Bhujal Yojana)

  • इस योजना का उद्देश्य भूजल संसाधनों का कुशल प्रबंधन और संरक्षण है।
  • सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से जल की उपलब्धता में सुधार।

3. प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY)

  • सिंचाई की दक्षता को बढ़ाने और किसानों को जल संकट से बचाने के लिए।
  • “हर खेत को पानी” का उद्देश्य।

4. नमामि गंगे योजना

  • गंगा नदी की सफाई और पुनर्जीवित करने की योजना।
  • जल स्रोतों को प्रदूषण मुक्त बनाने का प्रयास।

5. जल जीवन मिशन

  • हर घर में नल के माध्यम से स्वच्छ पेयजल पहुंचाने का लक्ष्य।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में जल संकट को दूर करने की योजना।

चुनौतियां और समाधान

चुनौतियां

  1. जल संकट से जुड़े मुद्दों पर राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी।
  2. विभिन्न राज्यों में जल वितरण और उपयोग की असमानता।
  3. जलवायु परिवर्तन से जल चक्र पर बढ़ता दबाव।
  4. अत्यधिक शहरीकरण और औद्योगिकरण से जल प्रदूषण।

संभावित समाधान

  • जल संरक्षण और प्रबंधन के लिए समन्वित राष्ट्रीय नीति।
  • निजी क्षेत्र और सामुदायिक संगठनों की भागीदारी।
  • तकनीकी नवाचार और अनुसंधान को प्रोत्साहन।
  • अंतर्राष्ट्रीय अनुभवों और प्रथाओं से सीखना।

निष्कर्ष

भारत में जल संकट एक जटिल और बहुआयामी समस्या है, लेकिन प्रभावी जल प्रबंधन से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। सरकार, समुदाय, और निजी क्षेत्र के सामूहिक प्रयासों के माध्यम से जल संसाधनों का संरक्षण और कुशल उपयोग सुनिश्चित किया जा सकता है। जल संकट का समाधान न केवल हमारी पीढ़ी के लिए, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। जल ही जीवन है, और इसे बचाना हमारी नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारी है।

 

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