आखिर क्या है पूरा मुद्दा
भारत एक संघीय संरचना वाला देश है, जहाँ केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन संविधान द्वारा निर्धारित किया गया है। भारत का संविधान, जो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ, केंद्र-राज्य संबंधों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है और यह सुनिश्चित करता है कि दोनों सरकारें अपने-अपने क्षेत्रों में स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकें। इस लेख में, हम केंद्र और राज्य सरकार के बीच शक्तियों के विभाजन के विभिन्न पहलुओं को विस्तार से समझेंगे।
संघवाद की अवधारणा
संघवाद का अर्थ है कि सरकार की शक्तियों का वितरण विभिन्न स्तरों पर किया जाता है, ताकि शक्ति का केंद्रीकरण न हो और सरकार की विभिन्न इकाइयाँ अपने-अपने क्षेत्रों में कार्य कर सकें। भारतीय संघीय ढाँचे की मुख्य विशेषता यह है कि यह “सशक्त केंद्र” वाला संघीय ढाँचा है। इसका अर्थ है कि भारत में केंद्र सरकार के पास अधिक शक्तियाँ हैं, जबकि राज्य सरकारों के अधिकार सीमित हैं।
भारतीय संविधान और शक्तियों का विभाजन
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 246 में शक्तियों का विभाजन तीन सूचियों के माध्यम से किया गया है:
- संघ सूची (Union List): इसमें 100 से अधिक विषय शामिल हैं, जिन पर केवल केंद्र सरकार को कानून बनाने का अधिकार है। इनमें रक्षा, विदेश नीति, संचार, परमाणु ऊर्जा, रेलवे, और नागरिक उड्डयन जैसे विषय शामिल हैं।
- राज्य सूची (State List): इसमें 61 विषय हैं, जिन पर केवल राज्य सरकार को कानून बनाने का अधिकार है। इनमें पुलिस, सार्वजनिक स्वास्थ्य, कृषि, जल आपूर्ति, भूमि सुधार, और जेल प्रशासन शामिल हैं।
- समवर्ती सूची (Concurrent List): इसमें 52 विषय हैं, जिन पर केंद्र और राज्य सरकार दोनों कानून बना सकते हैं। इनमें शिक्षा, वन, आर्थिक और सामाजिक नियोजन, मजदूरों का कल्याण, और विधि और व्यवस्था जैसे विषय शामिल हैं। यदि समवर्ती सूची में किसी विषय पर केंद्र और राज्य के कानून में टकराव होता है, तो संविधान के अनुच्छेद 254 के अनुसार, केंद्र का कानून प्रबल होता है।
शक्तियों के विभाजन के उद्देश्य
- स्वायत्तता सुनिश्चित करना: केंद्र और राज्यों को अपने-अपने क्षेत्रों में स्वायत्तता प्रदान करना, ताकि वे स्वतंत्र रूप से निर्णय ले सकें।
- राष्ट्रीय एकता बनाए रखना: संघीय ढाँचे के बावजूद, देश की एकता और अखंडता को बनाए रखना।
- स्थानीय आवश्यकताओं का ध्यान रखना: राज्यों को उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुसार कार्य करने की स्वतंत्रता देना।
- सहकारी संघवाद को बढ़ावा देना: केंद्र और राज्यों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करना।
केंद्र और राज्य के बीच संबंध
केंद्र और राज्यों के बीच संबंधों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है:
विधायी संबंध
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- संविधान के तहत शक्तियों का वितरण संघीय ढाँचे की नींव है।
- अनुच्छेद 249 के अनुसार, राज्य सूची के विषयों पर भी संसद कानून बना सकती है यदि यह राष्ट्रहित में आवश्यक हो।
- राष्ट्रपति के अनुच्छेद 356 के तहत राज्य में आपातकाल लगाने की स्थिति में, केंद्र सरकार राज्य के सभी विषयों पर कानून बना सकती है।
कार्यकारी संबंध
- केंद्र और राज्य के बीच कार्यकारी शक्तियों का वितरण संविधान के अनुच्छेद 256 से 263 के अंतर्गत किया गया है।
- केंद्र सरकार राज्यों को नीतिगत दिशानिर्देश दे सकती है।
- अनुच्छेद 365 के तहत, यदि राज्य सरकार केंद्र के निर्देशों का पालन नहीं करती है, तो राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है।
वित्तीय संबंध
- वित्तीय शक्तियों का वितरण संविधान के अनुच्छेद 268 से 293 के तहत किया गया है।
- केंद्र और राज्य के बीच करों का संग्रह और वितरण सुनिश्चित करने के लिए वित्त आयोग का गठन किया गया है।
- राज्यों को केंद्रीय करों में हिस्सेदारी और अनुदान के रूप में वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
केंद्र-राज्य संबंधों में विवाद
- वित्तीय असंतुलन: केंद्र और राज्य के बीच कर संग्रह और वित्तीय संसाधनों के वितरण में असंतुलन देखा गया है।
- राज्य सूची में हस्तक्षेप: कई बार केंद्र सरकार राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाकर राज्यों के अधिकारों में हस्तक्षेप करती है।
- राष्ट्रपति शासन: अनुच्छेद 356 का उपयोग कई बार राजनीतिक कारणों से किया गया है, जिससे केंद्र-राज्य संबंधों में तनाव उत्पन्न हुआ।
- समवर्ती सूची का विवाद: समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बनाते समय केंद्र और राज्य के बीच टकराव उत्पन्न होता है।
- जल विवाद: नदियों के जल वितरण को लेकर राज्यों के बीच विवाद, जैसे कावेरी जल विवाद, केंद्र-राज्य संबंधों को प्रभावित करता है।
सहकारी संघवाद की भूमिका
भारतीय संघीय ढाँचे में सहकारी संघवाद का महत्व अत्यधिक है। सहकारी संघवाद का अर्थ है कि केंद्र और राज्य सरकारें एक-दूसरे के साथ मिलकर कार्य करें। नीति आयोग, अंतर्राज्यीय परिषद, और गवर्नर की भूमिका सहकारी संघवाद को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण है।
सुधार और सुझाव
- वित्तीय स्वतंत्रता: राज्यों को अधिक वित्तीय स्वतंत्रता प्रदान की जानी चाहिए।
- संघीय ढाँचे की मजबूती: केंद्र को राज्य सूची के विषयों पर अनावश्यक हस्तक्षेप से बचना चाहिए।
- संवाद और सहयोग: केंद्र और राज्यों के बीच बेहतर संवाद और सहयोग के लिए अधिक मंच उपलब्ध कराए जाने चाहिए।
- विकेंद्रीकरण: शासन व्यवस्था में अधिक विकेंद्रीकरण को बढ़ावा देना चाहिए।
- अंतर्राज्यीय विवादों का समाधान: जल विवाद और अन्य मुद्दों के समाधान के लिए प्रभावी तंत्र विकसित किया जाना चाहिए।
निष्कर्ष
केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन भारतीय संघीय ढाँचे की प्रमुख विशेषता है। यह विभाजन राष्ट्रीय एकता और क्षेत्रीय स्वायत्तता के बीच संतुलन बनाए रखने में मदद करता है। हालाँकि, केंद्र-राज्य संबंधों में समय-समय पर विवाद उत्पन्न होते रहते हैं, लेकिन सहकारी संघवाद की भावना को बनाए रखते हुए इन समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। केंद्र और राज्य सरकारों के बीच बेहतर सहयोग और संवाद से भारत के संघीय ढाँचे को और अधिक सशक्त बनाया जा सकता है।