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एक नेशन एक इलेक्शन

एक नेशन एक इलेक्शन

एक राष्ट्र एक चुनाव

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पूर्व राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक साथ चुनाव संबंधी उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है।आइए जानते है क्या एक नेशन एक इलेक्शन

क्या है एक साथ सभी चुनाव ?

एक साथ चुनाव (जिसे एक राष्ट्र, एक चुनाव के नाम से भी जाना जाता है) का अर्थ है लोकसभा, सभी राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों यानी नगर पालिकाओं और पंचायतों के लिए एक साथ चुनाव कराना।

एक साथ चुनाव कराने का मतलब यह नहीं है कि देश भर में सभी चुनावों के लिए मतदान एक ही दिन में हो।

भारत में वर्ष 1951-52, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के लिए एक साथ चुनाव हुए।

1968-69 में राज्य विधानसभाओं और 1970 में लोक सभा के समय से पहले भंग होने के कारण यह चक्र बाधित हो गया।

एक साथ चुनाव की आवश्यकता

शासन और विकास: बार-बार होने वाले चुनावों के कारण आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) के कारण विकास कार्यक्रमों में देरी होती है।

बार-बार होने वाले चुनावों से आर्थिक विकास, निवेश संबंधी निर्णय और स्थगित आर्थिक निर्णयों की अवसर लागत पर असर पड़ता है।

सरकार के तीनों स्तरों के चुनाव एक साथ कराने से प्रवासी श्रमिकों द्वारा वोट डालने के लिए छुट्टी लेने के कारण आपूर्ति श्रृंखलाओं और उत्पादन चक्रों में होने वाले व्यवधान से बचा जा सकेगा।

उच्च वित्तीय बोझ: एक साथ चुनाव कराने से हर वर्ष अलग-अलग चुनाव कराने पर होने वाले भारी खर्च में कमी आएगी।

मानव संसाधनों का विचलन: जैसे सुरक्षा बल और अन्य निर्वाचन अधिकारी (जैसे शिक्षक) को लम्बे समय तक अपने प्राथमिक कर्तव्यों से हटाना।

अदालतों पर बोझ कम करना: कम चुनावों का मतलब है चुनाव संबंधी कम विवाद, जिससे अदालतों पर काम का बोझ कम होगा।

पहचान की राजनीति को कम करना: बार-बार होने वाले चुनावों में जाति और वर्ग जैसी पहचान की राजनीति का इस्तेमाल होता है, जिससे विभाजन पैदा होता है और सामाजिक सामंजस्य बाधित होता है।

मतदाता भागीदारी: चरणों में चुनाव कराने से मतदाता थक जाते हैं और उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने में बड़ी चुनौती उत्पन्न होती है।

एक साथ चुनाव संबंधी उच्च स्तरीय समिति की मुख्य बातें

समिति ने बार-बार होने वाले चुनावों के कारण सरकार, व्यवसाय, न्यायालय, राजनीतिक दलों, नागरिक समाज आदि पर पड़ने वाले बोझ को कम करने के लिए लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के लिए एक साथ चुनाव कराने की वकालत की। सिफारिशें इस प्रकार हैं:

चुनावों का समन्वय: दो चरणों में होंगे चुनाव

प्रथम चरण: लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ आयोजित करना। 

दूसरा चरण: आम चुनावों के 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव (पंचायत और नगर पालिका) आयोजित करना।

प्रस्तावित संवैधानिक संशोधन: उच्च स्तरीय समिति ने तीन अनुच्छेदों में संशोधन, मौजूदा अनुच्छेदों में 12 नए उप-खंड सम्मिलित करने तथा विधानसभा वाले केंद्र शासित प्रदेशों से संबंधित तीन कानूनों में बदलाव का प्रस्ताव दिया था।

एकल मतदाता सूची: अनुच्छेद 325 में संशोधन करके राज्य निर्वाचन आयोग के परामर्श से भारत निर्वाचन आयोग द्वारा तैयार की जाएगी।

चूंकि इसमें भारतीय संविधान की 7वीं अनुसूची, भाग IX और भाग IXA में राज्य विषयों (स्थानीय सरकार) में संशोधन शामिल है, इसलिए अनुच्छेद 368(2) के तहत राज्यों द्वारा अनुसमर्थन आवश्यक है।

राज्यों द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता: समिति ने पाया कि संसद और राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल से संबंधित संवैधानिक संशोधनों को राज्यों द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता नहीं होगी। हालाँकि, स्थानीय निकायों से संबंधित संवैधानिक संशोधनों को कम से कम आधे राज्यों द्वारा अनुसमर्थन के साथ पारित किया जाना आवश्यक होगा।

एक साथ चुनाव कराने के लिए रसद व्यवस्था करना कितना अहम ?

लोक सभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों के लिए: भारत का निर्वाचन आयोग ईवीएम/वीवीपीएटी की खरीद, मतदान कर्मियों, सुरक्षा बलों आदि की तैनाती के अग्रिम अनुमान के लिए एक योजना तैयार करेगा।

नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनावों के लिए: राज्य चुनाव आयोग, भारत के निर्वाचन आयोग के परामर्श से, रसद आवश्यकताओं के लिए एक योजना तैयार करेगा।

प्रक्रिया के निष्पादन की निगरानी के लिए एक कार्यान्वयन समूह का गठन।

एक साथ चुनाव कराने की चुनौतियां और जटिलताएं

क्षेत्रीय मुद्दों पर हावी होना: लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने से राष्ट्रीय मुद्दे, क्षेत्रीय और राज्य विशेष के मुद्दों पर हावी हो जाएंगे।

क्षेत्रीय दलों पर प्रभाव: एक साथ चुनाव कराने से ऐसी प्रणाली बन सकती है, जिसमें राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को क्षेत्रीय दलों पर महत्वपूर्ण लाभ प्राप्त होगा।

राजनीतिक जवाबदेही: बार-बार चुनाव होने से सांसदों की जवाबदेही तय होती है, जबकि निश्चित कार्यकाल से कार्य-निष्पादन की जांच के बिना अनावश्यक स्थिरता मिल सकती है, जो लोकतांत्रिक सिद्धांतों को चुनौती देती है।

संघवाद के बारे में चिंताएँ: अनुच्छेद 172 के तहत राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल से संबंधित संवैधानिक संशोधन राज्यों द्वारा अनुसमर्थन के बिना किए जा सकते हैं। इस प्रकार, राज्यों की राय और बात कम हो जाती है।

तार्किक मुद्दे: ONOE के आयोजन के लिए महत्वपूर्ण संसाधनों की आवश्यकता होगी, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों की विशाल आपूर्ति और प्रक्रिया की देखरेख के लिए प्रशिक्षित कार्मिक शामिल होंगे।

निष्कर्ष

साथ-साथ चुनाव की कुशलता और संघवाद, लोकतांत्रिक अखंडता और राजनीतिक बहुलता के मूलभूत सिद्धांतों के बीच एक नाजुक संतुलन को विस्तृत विधायी विचार-विमर्श के माध्यम से सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।एक राष्ट्र, एक चुनाव का उद्देश्य प्रशासनिक दक्षता और विकास में तेजी लाना है। हालांकि, इसे लागू करने में संघवाद, लोकतांत्रिक मूल्यों और क्षेत्रीय विविधताओं के सम्मान को सुनिश्चित करना आवश्यक है। व्यापक चर्चा और सहमति के बाद ही इसे प्रभावी रूप से लागू किया जा सकता है।

 

FAQ: एक राष्ट्र, एक चुनाव

 

चर्चा में क्यों है?

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पूर्व राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों को स्वीकार किया है, जो एक राष्ट्र, एक चुनाव (ONOE) की अवधारणा को लागू करने पर विचार कर रही है।

 

एक साथ चुनाव क्या है?

परिभाषा: लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों (नगरपालिकाओं और पंचायतों) के लिए एक ही समय पर चुनाव कराना।

महत्वपूर्ण तथ्य:

यह आवश्यक नहीं है कि सभी चुनाव एक ही दिन हों।

1951-52, 1957, 1962 और 1967 में भारत में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए गए थे।

यह चक्र 1968-69 में राज्य विधानसभाओं और 1970 में लोकसभा के समय से पहले भंग होने से बाधित हो गया।

 

एक साथ चुनाव की आवश्यकता

शासन और विकास में बाधा हटाना:

आदर्श आचार संहिता (MCC) बार-बार लागू होने से विकास परियोजनाओं और निवेश निर्णयों में देरी होती है।

आर्थिक बोझ कम करना:

बार-बार होने वाले चुनावों पर भारी खर्च को रोका जा सकता है।

संसाधनों का उपयोग:

चुनाव के लिए सुरक्षा बलों और सरकारी कर्मचारियों को बार-बार तैनात करने की आवश्यकता कम होगी।

अदालतों पर दबाव घटाना:

चुनाव संबंधी विवादों में कमी आएगी।

पहचान की राजनीति कम करना:

बार-बार चुनावों से जाति और वर्ग जैसे मुद्दों पर अधिक ध्यान केंद्रित होता है।

मतदाता भागीदारी बढ़ाना:

बार-बार चुनावों से मतदाता थकावट (voter fatigue) का खतरा कम होगा।

 

उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशें

चुनावों का समन्वय:

दो चरणों में चुनाव:

पहला चरण: लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव।

दूसरा चरण: स्थानीय निकायों (नगर पालिका और पंचायत) के चुनाव।

संवैधानिक संशोधन:

अनुच्छेद 172, 174, 324, 325, 326 और 328 में संशोधन का प्रस्ताव।

राज्यों द्वारा कम से कम आधे संवैधानिक संशोधनों का अनुसमर्थन आवश्यक।

एकल मतदाता सूची:

अनुच्छेद 325 में संशोधन कर भारत निर्वाचन आयोग (ECI) को एकल मतदाता सूची तैयार करने का अधिकार देना।

लॉजिस्टिक्स:

लोकसभा और विधानसभाओं के चुनावों के लिए ECI योजना तैयार करेगा।

पंचायत और नगरपालिकाओं के चुनावों के लिए राज्य निर्वाचन आयोग (SEC) योजना बनाएगा।

निगरानी और कार्यान्वयन:

एक कार्यान्वयन समूह का गठन होगा।

 

चुनौतियां और जटिलताएं

क्षेत्रीय मुद्दों का दबाव:

क्षेत्रीय मुद्दे राष्ट्रीय मुद्दों के सामने गौण हो सकते हैं।

क्षेत्रीय दलों पर प्रभाव:

राष्ट्रीय दलों को अधिक लाभ मिल सकता है, जिससे क्षेत्रीय दलों की प्रासंगिकता कम हो सकती है।

संघवाद पर प्रभाव:

संवैधानिक संशोधन के लिए राज्यों की सहमति कम होने से संघवाद कमजोर हो सकता है।

लॉजिस्टिक चुनौतियां:

बड़ी संख्या में ईवीएम/वीवीपीएटी की आवश्यकता और प्रशिक्षण की जटिलता।

राजनीतिक जवाबदेही:

बार-बार चुनावों से सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित होती है। निश्चित कार्यकाल से इस पर असर पड़ सकता है।

 

 

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