भारत-चीन संबंध: ऐतिहासिक और वर्तमान परिप्रेक्ष्य
भारत और चीन, दो प्राचीन सभ्यताएं, एशिया की प्रमुख शक्तियां और विश्व की सबसे बड़ी जनसंख्या वाले देश हैं। दोनों देशों के बीच संबंध इतिहास, संस्कृति, व्यापार, और राजनीतिक मुद्दों के आधार पर लंबे समय से बने हुए हैं। हालांकि, इन संबंधों में कई बार तनाव भी आया है, खासकर सीमा विवाद और भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के कारण।
इस लेख में, हम भारत-चीन संबंधों के ऐतिहासिक विकास, प्रमुख घटनाओं, और वर्तमान परिप्रेक्ष्य का विश्लेषण करेंगे।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
- प्राचीन समय में भारत-चीन संबंध
- भारत और चीन के बीच संबंध लगभग 2000 साल पुराने हैं।
- सांस्कृतिक और बौद्ध धर्म का प्रभाव:
- चीनी यात्री फाह्यान (5वीं सदी) और ह्वेनसांग (7वीं सदी) भारत आए और यहां की संस्कृति और बौद्ध धर्म का अध्ययन किया।
- बौद्ध धर्म भारत से चीन तक फैला, जिसने दोनों देशों को सांस्कृतिक रूप से जोड़ा।
- व्यापारिक संबंध:
- सिल्क रूट के माध्यम से दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंध स्थापित हुए।
- औपनिवेशिक काल में संबंध
- ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में भारत-चीन संबंध कमजोर हो गए।
- ब्रिटिश शासन ने तिब्बत और भारत के बीच सीमाओं को नियंत्रित करने की कोशिश की, जिससे चीन के साथ तनाव पैदा हुआ।
- आजादी के बाद संबंध
- 1949 में चीन में माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्ट सरकार की स्थापना हुई।
- भारत ने 1950 में सबसे पहले चीन को मान्यता दी और दोस्ताना संबंध बनाए रखने का प्रयास किया।
- पंचशील समझौता (1954):
- भारत और चीन ने शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पंचशील सिद्धांतों को अपनाया।
- यह संबंधों को सुधारने का एक महत्वपूर्ण प्रयास था।
1962 का भारत-चीन युद्ध और उसके परिणाम
- सीमा विवाद का आरंभ
- भारत और चीन के बीच 3488 किमी लंबी सीमा पर विवाद है।
- मुख्य विवादित क्षेत्र:
- अक्साई चिन: चीन द्वारा नियंत्रित, लेकिन भारत इसका दावा करता है।
- अरुणाचल प्रदेश: भारत का राज्य, जिसे चीन “दक्षिण तिब्बत” कहता है।
- 1962 का युद्ध
- सीमा विवाद के कारण 1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध हुआ।
- चीन ने अक्साई चिन पर कब्जा कर लिया, जबकि अरुणाचल प्रदेश में भी घुसपैठ की।
- यह युद्ध भारत के लिए एक बड़ी हार साबित हुआ और दोनों देशों के संबंधों में गहरा तनाव आ गया।
- परिणाम और प्रभाव
- भारत ने अपनी रक्षा तैयारियों को मजबूत किया।
- दोनों देशों के बीच आपसी विश्वास में कमी आई।
- यह युद्ध भारत-चीन संबंधों में एक निर्णायक मोड़ था।
1962 के बाद भारत-चीन संबंध
- 1970 और 1980 का दशक:
- दोनों देशों ने तनाव को कम करने और संबंधों को सुधारने का प्रयास किया।
- 1976 में राजनयिक संबंध बहाल हुए।
- 1988 में भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने चीन की यात्रा की, जिसने संबंधों में नई शुरुआत की।
- 1993 और 1996 के समझौते:
- सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए समझौते हुए।
- दोनों देशों ने सीमा पर सैनिकों की संख्या कम करने और घुसपैठ रोकने का वादा किया।
- व्यापार और आर्थिक संबंधों का विस्तार:
- 2000 के दशक में भारत और चीन ने आर्थिक सहयोग को बढ़ावा दिया।
- चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया।
- 2022 तक भारत-चीन व्यापार 135 बिलियन डॉलर से अधिक था।
- वैश्विक मंच पर सहयोग:
- दोनों देश ब्रिक्स, एससीओ, और जी20 जैसे बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग करते हैं।
- पर्यावरणीय मुद्दों और विकासशील देशों के हितों के लिए दोनों देश मिलकर काम करते हैं।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य: भारत-चीन संबंध
- सीमा विवाद और हालिया तनाव:
- डोकलाम विवाद (2017):
- भारत और चीन के सैनिक डोकलाम क्षेत्र में आमने-सामने आ गए।
- यह विवाद 73 दिनों तक चला और अंततः दोनों देशों ने संयम बरता।
- गलवान घाटी संघर्ष (2020):
- लद्दाख में गलवान घाटी में हिंसक झड़पें हुईं, जिसमें 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए।
- यह घटना 1962 के बाद सबसे गंभीर थी और इससे संबंध और बिगड़ गए।
- अरुणाचल प्रदेश पर चीन का दावा:
- चीन अरुणाचल प्रदेश को “दक्षिण तिब्बत” कहता है, जबकि भारत इसे अपना अभिन्न हिस्सा मानता है।
- व्यापारिक असंतुलन:
- भारत और चीन के बीच व्यापारिक संबंध मजबूत हैं, लेकिन इसमें बड़ा असंतुलन है।
- चीन से भारत का आयात अधिक है, जबकि निर्यात बहुत कम।
- आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत भारत ने चीनी उत्पादों पर निर्भरता कम करने का प्रयास किया है।
- भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा:
- भारत और चीन एशिया में नेतृत्व के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं।
- चीन का बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) भारत के लिए चिंता का विषय है।
- भारत ने चीन के प्रभाव को संतुलित करने के लिए क्वाड (Quad) और इंडो-पैसिफिक रणनीति को अपनाया है।
- सॉफ्ट पावर और प्रभाव:
- भारत अपनी सांस्कृतिक और लोकतांत्रिक छवि के माध्यम से वैश्विक मंच पर प्रभाव बढ़ा रहा है।
- चीन अपनी आर्थिक ताकत और तकनीकी क्षमता का उपयोग कर रहा है।
भारत-चीन संबंधों की चुनौतियां
- सीमा विवाद:
- अक्साई चिन और अरुणाचल प्रदेश के मुद्दे पर कोई समाधान नहीं निकला है।
- बार-बार सीमा पर तनाव उत्पन्न होता है।
- आर्थिक असंतुलन:
- व्यापार में बड़ा असंतुलन भारत की अर्थव्यवस्था पर दबाव डालता है।
- भरोसे की कमी:
- 1962 के युद्ध और हालिया घटनाओं के कारण आपसी विश्वास कमजोर है।
- चीन-पाकिस्तान गठजोड़:
- चीन और पाकिस्तान के मजबूत संबंध भारत के लिए चिंता का विषय हैं।
- चीन का आर्थिक गलियारा (CPEC) भारत के जम्मू-कश्मीर क्षेत्र से गुजरता है।
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा:
- चीन हिंद महासागर में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है, जो भारत के सामरिक हितों के लिए चुनौती है।
समाधान और भविष्य की दिशा
- सीमा विवाद का समाधान:
- दोनों देशों को शांतिपूर्ण वार्ता और समझौते के माध्यम से सीमा विवाद का हल निकालना चाहिए।
- सीमा पर विश्वास बहाली के उपाय (CBMs) को मजबूत करना।
- व्यापारिक संबंधों में सुधार:
- भारत को अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाकर चीन पर निर्भरता कम करनी चाहिए।
- व्यापार असंतुलन को दूर करने के लिए चीन के साथ संवाद बढ़ाना।
- भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का प्रबंधन:
- भारत को अन्य एशियाई देशों और पश्चिमी शक्तियों के साथ संबंध मजबूत करने चाहिए।
- क्वाड और इंडो-पैसिफिक रणनीति के तहत चीन के प्रभाव को संतुलित करना।
- सांस्कृतिक और जनसंपर्क बढ़ाना:
- लोगों के बीच संपर्क और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना।
- छात्र और शैक्षिक विनिमय कार्यक्रम।
- वैश्विक मंच पर सहयोग:
- पर्यावरणीय मुद्दों, आतंकवाद, और वैश्विक विकास जैसे मुद्दों पर सहयोग बढ़ाना।
- बहुपक्षीय मंचों पर संवाद और साझेदारी।
निष्कर्ष
भारत-चीन संबंध जटिल, लेकिन महत्वपूर्ण हैं। दोनों देश एशिया की प्रमुख शक्तियां हैं और उनकी भू-राजनीतिक स्थिति, आर्थिक क्षमता, और सांस्कृतिक विरासत इन्हें वैश्विक मंच पर प्रमुख भूमिका निभाने के योग्य बनाती हैं।
हालांकि, सीमा विवाद और आपसी प्रतिस्पर्धा के कारण संबंधों में तनाव है, लेकिन यह जरूरी है कि दोनों देश बातचीत और कूटनीति के माध्यम से इन समस्याओं का समाधान निकालें। यदि भारत और चीन सहयोगात्मक दृष्टिकोण अपनाते हैं, तो यह न केवल दोनों देशों के लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए लाभकारी होगा।