भारत की विदेश नीति: पंचशील से आज तक
भारत की विदेश नीति का निर्माण उसकी सांस्कृतिक विरासत, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, और भू-राजनीतिक स्थिति के आधार पर हुआ है। आजादी के बाद, भारत ने एक संतुलित और स्वतंत्र विदेश नीति अपनाई, जो शांति, सहयोग, और समानता के सिद्धांतों पर आधारित थी। देश ने “पंचशील” सिद्धांतों के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय संबंधों में एक आदर्श प्रस्तुत किया। समय के साथ, भारत की विदेश नीति ने बदलती वैश्विक परिस्थितियों और राष्ट्रीय हितों के आधार पर खुद को अनुकूलित किया।
यह लेख भारत की विदेश नीति के ऐतिहासिक विकास, इसके विभिन्न चरणों, प्रमुख सिद्धांतों, और मौजूदा समय में इसकी प्राथमिकताओं पर प्रकाश डालेगा।
विदेश नीति: परिभाषा और उद्देश्य
विदेश नीति की परिभाषा
विदेश नीति किसी देश के द्वारा अन्य देशों के साथ अपने राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, और रणनीतिक संबंधों को स्थापित करने और बनाए रखने की प्रक्रिया है।
विदेश नीति के उद्देश्य
- राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करना।
- आर्थिक विकास को बढ़ावा देना।
- अंतरराष्ट्रीय शांति और स्थिरता बनाए रखना।
- वैश्विक समस्याओं के समाधान में योगदान देना।
- भारत की सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों का प्रचार।
भारत की विदेश नीति के प्रमुख सिद्धांत
- पंचशील के सिद्धांत (1954):
भारत और चीन के बीच हुए एक समझौते में पंचशील के सिद्धांतों को अपनाया गया। ये सिद्धांत अंतरराष्ट्रीय संबंधों में शांति और सम्मान का आधार बने:
- एक-दूसरे की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान।
- आक्रमण न करने का वचन।
- एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना।
- समानता और परस्पर लाभ का आधार।
- शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व।
- गुटनिरपेक्षता:
- शीत युद्ध के दौरान, भारत ने न तो अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिमी गुट का समर्थन किया और न ही सोवियत संघ के नेतृत्व वाले पूर्वी गुट का।
- 1961 में बेलग्रेड में भारत, मिस्र, और यूगोस्लाविया जैसे देशों ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) की स्थापना की।
- इसका उद्देश्य था सभी देशों के साथ मित्रतापूर्ण संबंध बनाए रखना और अंतरराष्ट्रीय शांति को बढ़ावा देना।
- वैश्विक शांति का प्रचार:
- भारत ने हमेशा युद्ध और सैन्य हस्तक्षेप का विरोध किया।
- संयुक्त राष्ट्र (UN) के माध्यम से शांति बनाए रखने में भारत ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- आत्मनिर्भरता और आर्थिक सहयोग:
- भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाने पर जोर दिया और विकासशील देशों के साथ आर्थिक सहयोग को बढ़ावा दिया।
भारत की विदेश नीति के प्रमुख चरण
- नेहरू युग (1947-1964):
- जवाहरलाल नेहरू ने भारत की विदेश नीति की नींव रखी।
- उन्होंने गुटनिरपेक्षता और पंचशील के सिद्धांतों को अपनाया।
- भारत ने कोरियाई युद्ध, सूएज़ संकट, और औपनिवेशिक मुक्ति आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाई।
- भारत-पाकिस्तान और चीन के साथ संबंध (1965-1971):
- 1965 और 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुए।
- 1962 में भारत-चीन युद्ध ने दोनों देशों के संबंधों में खटास पैदा की।
- 1971 में बांग्लादेश की मुक्ति में भारत की भूमिका ने उसकी वैश्विक स्थिति को मजबूत किया।
- शीत युद्ध का प्रभाव (1971-1991):
- इस दौरान भारत ने सोवियत संघ के साथ अपने संबंधों को मजबूत किया।
- 1974 में भारत ने पोखरण में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया।
- हालांकि, भारत ने गुटनिरपेक्षता की अपनी नीति को बरकरार रखा।
- उदारीकरण के बाद की विदेश नीति (1991-2000):
- 1991 में भारत ने आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत की।
- वैश्विक व्यापार और विदेशी निवेश के लिए दरवाजे खोले गए।
- भारत ने अमेरिका, यूरोपीय संघ, और एशियाई देशों के साथ अपने आर्थिक संबंधों को मजबूत किया।
- 21वीं सदी में विदेश नीति (2000-वर्तमान):
- भारत ने वैश्विक शक्ति बनने के लिए बहुपक्षीय कूटनीति अपनाई।
- रणनीतिक साझेदारी, जैसे अमेरिका, रूस, जापान, और ऑस्ट्रेलिया के साथ संबंधों को प्राथमिकता दी।
- क्षेत्रीय संगठनों, जैसे BRICS, BIMSTEC, और G20 में सक्रिय भूमिका।
- आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक मुद्दों पर नेतृत्वकारी भूमिका।
भारत की मौजूदा विदेश नीति की प्राथमिकताएं
- आर्थिक सहयोग और व्यापार:
- भारत ने अपने आर्थिक विकास को बढ़ाने के लिए मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) और क्षेत्रीय सहयोग को प्राथमिकता दी है।
- “मेक इन इंडिया” और “डिजिटल इंडिया” जैसे अभियानों को बढ़ावा देने के लिए विदेशी निवेश को आकर्षित किया जा रहा है।
- रणनीतिक और सैन्य संबंध:
- भारत ने अमेरिका, फ्रांस, इजराइल, और रूस जैसे देशों के साथ रक्षा समझौतों को मजबूत किया।
- क्वाड (Quad) जैसे रणनीतिक समूहों में भागीदारी।
- भारत ने अपनी समुद्री सुरक्षा और हिंद महासागर क्षेत्र में उपस्थिति को बढ़ाया है।
- सांस्कृतिक कूटनीति:
- भारत अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को “सॉफ्ट पावर” के रूप में इस्तेमाल कर रहा है।
- अंतरराष्ट्रीय योग दिवस और बॉलीवुड के माध्यम से वैश्विक मंच पर सांस्कृतिक प्रभाव बढ़ा है।
- आतंकवाद का मुकाबला:
- भारत ने संयुक्त राष्ट्र और अन्य मंचों पर आतंकवाद के खिलाफ एकजुट वैश्विक कार्रवाई की मांग की है।
- पाकिस्तान के साथ संबंधों में आतंकवाद एक प्रमुख मुद्दा बना हुआ है।
- जलवायु परिवर्तन और सतत विकास:
- भारत ने पेरिस समझौते और अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) में नेतृत्वकारी भूमिका निभाई।
- अक्षय ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देना भारत की प्राथमिकताओं में शामिल है।
प्रमुख चुनौतियां
- चीन के साथ तनावपूर्ण संबंध:
- भारत और चीन के बीच सीमा विवाद और व्यापारिक असमानता।
- चीन की “बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव” और भारत की चिंता।
- पाकिस्तान के साथ संघर्ष:
- कश्मीर मुद्दा और सीमा पर तनाव।
- आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान के खिलाफ भारत की सख्त नीति।
- अंतरराष्ट्रीय दबाव:
- पश्चिमी देशों द्वारा मानवाधिकार और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर दबाव।
- आर्थिक असंतुलन:
- वैश्विक अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव का प्रभाव।
- आत्मनिर्भर भारत को वैश्विक सहयोग के साथ संतुलित करना।
- बहुपक्षीय संगठनों में सुधार:
- भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की मांग कर रहा है।
भारत की विदेश नीति के लिए भविष्य की दिशा
- बहुपक्षीय कूटनीति का विस्तार:
- भारत को वैश्विक मंचों, जैसे G20, BRICS, और ASEAN में अपनी भागीदारी को मजबूत करना चाहिए।
- तकनीकी और डिजिटल कूटनीति:
- साइबर सुरक्षा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, और डेटा प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाना।
- पड़ोसी देशों के साथ संबंध सुधार:
- “नेबरहुड फर्स्ट” नीति के तहत पाकिस्तान, नेपाल, और बांग्लादेश के साथ संबंधों को सुधारना।
- अंतरराष्ट्रीय नेतृत्व:
- जलवायु परिवर्तन, सतत विकास, और वैश्विक स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर नेतृत्वकारी भूमिका निभाना।
- सुरक्षा और आतंकवाद:
- आतंकवाद के खिलाफ कड़े कदम उठाना और वैश्विक सहयोग बढ़ाना।
निष्कर्ष
भारत की विदेश नीति ने स्वतंत्रता से लेकर वर्तमान समय तक कई बदलाव देखे हैं। पंचशील के सिद्धांतों और गुटनिरपेक्षता से शुरू होकर, आज भारत एक वैश्विक शक्ति बनने की दिशा में अग्रसर है।
भारत की विदेश नीति का उद्देश्य न केवल अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करना है, बल्कि वैश्विक समस्याओं का समाधान करने में योगदान देना भी है। अगर भारत अपनी कूटनीतिक रणनीतियों को सुदृढ़ बनाए रखे, तो वह 21वीं सदी में वैश्विक शक्ति के रूप में उभरने की अपनी क्षमता को पूरी तरह से प्राप्त कर सकता है।