पूरा समझिए क्या है भारतीय संसद

भारतीय संसद: संरचना, कार्य और चुनौतियाँ

भारतीय संसद लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था का मुख्य स्तंभ है। यह न केवल देश के कानून बनाने का सर्वोच्च मंच है, बल्कि शासन और प्रशासन की निगरानी का भी केंद्र है। भारतीय संसद संविधान की आत्मा का प्रतीक है और यह भारत की जनता के लिए एक महत्वपूर्ण मंच प्रदान करती है। इस लेख में, हम भारतीय संसद की संरचना, उसके कार्यों और उससे जुड़ी चुनौतियों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

भारतीय संसद की संरचना

भारतीय संसद एक द्विसदनीय प्रणाली पर आधारित है, जिसमें दो सदन शामिल हैं:

  1. लोकसभा (संसद का निचला सदन):
    • लोकसभा को “जन प्रतिनिधि सभा” के रूप में जाना जाता है।
    • इसमें अधिकतम 552 सदस्य हो सकते हैं, जिनमें से 530 सदस्य राज्यों से, 20 सदस्य केंद्र शासित प्रदेशों से चुने जाते हैं, और 2 एंग्लो-इंडियन समुदाय से राष्ट्रपति द्वारा नामित किए जा सकते हैं (हालाँकि यह प्रावधान 104वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2019 के बाद समाप्त हो गया है)।
    • लोकसभा के सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष मतदान के माध्यम से किया जाता है।
    • लोकसभा का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, लेकिन इसे भंग किया जा सकता है।
  2. राज्यसभा (संसद का उच्च सदन):
    • राज्यसभा को “स्थायी सदन” कहा जाता है क्योंकि इसे भंग नहीं किया जा सकता।
    • इसमें अधिकतम 250 सदस्य हो सकते हैं, जिनमें से 238 सदस्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से निर्वाचित होते हैं और 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नामित किए जाते हैं।
    • राज्यसभा के सदस्य 6 वर्ष के कार्यकाल के लिए चुने जाते हैं और हर दो वर्ष में एक-तिहाई सदस्य सेवानिवृत्त होते हैं।
  3. राष्ट्रपति:
    • भारतीय संसद का एक अभिन्न हिस्सा होते हुए, राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों के कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

भारतीय संसद के कार्य

भारतीय संसद के कार्यों को मुख्यतः विधायी, कार्यकारी, वित्तीय, और अन्य श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है।

  1. विधायी कार्य:
    • संसद का प्राथमिक कार्य नए कानून बनाना और पुराने कानूनों में संशोधन करना है।
    • यह संविधान संशोधन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  2. कार्यपालिका की निगरानी:
    • संसद सरकार के कार्यों की निगरानी करती है और कार्यपालिका को जवाबदेह ठहराती है।
    • प्रश्नकाल, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव और स्थगन प्रस्ताव जैसे उपकरण इस उद्देश्य की पूर्ति करते हैं।
  3. वित्तीय कार्य:
    • संसद के पास देश के वित्तीय मामलों पर सर्वोच्च अधिकार है।
    • यह वार्षिक बजट पारित करती है और केंद्र सरकार के वित्तीय कार्यों की समीक्षा करती है।
    • कोई भी कर या वित्तीय प्रस्ताव संसद की अनुमति के बिना लागू नहीं किया जा सकता।
  4. संवैधानिक सुधार:
    • संसद को संविधान संशोधन का अधिकार है।
    • संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संसद संविधान में संशोधन कर सकती है।
  5. न्यायिक कार्य:
    • संसद महाभियोग के माध्यम से राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, और उच्च न्यायालय व उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को उनके पद से हटाने की प्रक्रिया शुरू कर सकती है।
  6. अन्य कार्य:
    • संसद अंतर्राष्ट्रीय संधियों और समझौतों को मंजूरी देती है।
    • यह राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर चर्चा और निर्णय लेती है।

भारतीय संसद की चुनौतियाँ

भारतीय संसद के सामने कई चुनौतियाँ हैं जो इसके सुचारु कार्य में बाधा उत्पन्न करती हैं। इन चुनौतियों में कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं:

  1. सत्रों की घटती उत्पादकता:
    • संसद के सत्रों की उत्पादकता में गिरावट आई है। हंगामे और कार्यवाही के स्थगन के कारण महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा नहीं हो पाती।
  2. विधायी प्रक्रिया में गिरावट:
    • संसद में विधेयकों को जल्दबाजी में पारित किया जाता है, जिससे विस्तृत चर्चा और विचार-विमर्श का अभाव होता है।
  3. राजनीतिक ध्रुवीकरण:
    • राजनीतिक दलों के बीच बढ़ता ध्रुवीकरण संसदीय कार्यवाही को प्रभावित करता है।
  4. भ्रष्टाचार और आपराधिक पृष्ठभूमि:
    • संसद में आपराधिक पृष्ठभूमि के सदस्यों की बढ़ती संख्या इसकी गरिमा को कम करती है।
  5. कार्यपालिका का दबाव:
    • संसद पर कार्यपालिका का प्रभाव बढ़ता जा रहा है, जिससे इसकी स्वतंत्रता और स्वायत्तता प्रभावित होती है।
  6. धन विधेयकों का दुरुपयोग:
    • कई बार सामान्य विधेयकों को धन विधेयक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जिससे राज्यसभा की भूमिका सीमित हो जाती है।
  7. पब्लिक अकाउंट्स कमिटी (PAC) का सीमित प्रभाव:
    • वित्तीय मामलों की निगरानी के लिए बनाई गई समितियों का प्रभाव सीमित हो गया है।

भारतीय संसद को सशक्त बनाने के उपाय

भारतीय संसद को अधिक प्रभावी और सशक्त बनाने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:

  1. सत्रों की उत्पादकता बढ़ाना:
    • संसद के सत्रों की संख्या और उनकी अवधि बढ़ाई जानी चाहिए। साथ ही, सदस्यों को हंगामे से बचने और गंभीर चर्चा में भाग लेने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
  2. विधायी प्रक्रिया में सुधार:
    • विधेयकों पर विस्तृत चर्चा और विचार-विमर्श के लिए समय सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
  3. चुनावी सुधार:
    • संसद में आपराधिक पृष्ठभूमि के सदस्यों की संख्या को कम करने के लिए चुनावी सुधार आवश्यक हैं।
  4. समिति प्रणाली को मजबूत करना:
    • स्थायी और चयन समितियों की भूमिका को मजबूत किया जाना चाहिए ताकि वित्तीय और विधायी मामलों की गहन समीक्षा हो सके।
  5. धन विधेयकों का उचित उपयोग:
    • धन विधेयकों की परिभाषा और प्रक्रिया को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए।
  6. सदस्यों की जवाबदेही:
    • संसद सदस्यों की उपस्थिति और उनकी भागीदारी को ट्रैक करने के लिए एक मजबूत तंत्र विकसित किया जाना चाहिए।
  7. संसदीय प्रशिक्षण:
    • नए सदस्यों के लिए संसदीय प्रक्रिया और नियमों की समझ बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए।

निष्कर्ष

भारतीय संसद भारतीय लोकतंत्र का प्रतीक है और यह देश के शासन तंत्र की आधारशिला है। इसकी संरचना और कार्य प्रणाली इसे विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में स्थापित करती है। हालाँकि, इसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, लेकिन सुधारात्मक उपायों और संसदीय प्रक्रिया को सशक्त बनाकर इन समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। संसद की कार्यक्षमता को बढ़ाने के लिए सभी राजनीतिक दलों और नागरिक समाज को मिलकर प्रयास करना होगा, ताकि यह संस्था देश की प्रगति और विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सके।

 

Gyan From Home

हमारे द्वारा यह लक्ष्य लिया गया है कि भारत के सभी स्टूडेंट्स को अधिकतम मुफ्त शिक्षा दी जा सके ।

Leave a Reply